हमें है शौक़ कि बे-पर्दा तुम को देखेंगे
तुम्हें है शर्म तो आँखों पे हाथ धर लेना
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रुख़-ए-रौशन के आगे शम्अ रख कर वो ये कहते हैं
फिर गया जब से कोई आ के हमारे दर तक
रह गए लाखों कलेजा थाम कर
जिन को अपनी ख़बर नहीं अब तक
दिल ही तो है न आए क्यूँ दम ही तो है न जाए क्यूँ
ये गुस्ताख़ी ये छेड़ अच्छी नहीं है ऐ दिल-ए-नादाँ
सितम-ईजाद के अंदाज़-ए-सितम तो देखो
बे-ज़बानी ज़बाँ न हो जाए
उधर शर्म हाइल इधर ख़ौफ़ माने
फ़लक देता है जिन को ऐश उन को ग़म भी होते हैं
इस अदा से वो जफ़ा करते हैं
क्या क्या फ़रेब दिल को दिए इज़्तिराब में