हो सके क्या अपनी वहशत का इलाज
मेरे कूचे में भी सहरा चाहिए
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साज़ ये कीना-साज़ क्या जानें
दिल क्या मिलाओगे कि हमें हो गया यक़ीं
वो जाते हैं आती है क़यामत की सहर आज
ज़िद हर इक बात पर नहीं अच्छी
उन के इक जाँ-निसार हम भी हैं
लज़्ज़त-ए-इश्क़ इलाही मिट जाए
मैं भी हैरान हूँ ऐ 'दाग़' कि ये बात है क्या
ग़म से कहीं नजात मिले चैन पाएँ हम
कहीं है ईद की शादी कहीं मातम है मक़्तल में
ईद है क़त्ल मिरा अहल-ए-तमाशा के लिए
ग़ज़ब किया तिरे वअ'दे पे ए'तिबार किया
शब-ए-वस्ल ज़िद में बसर हो गई