ग़ज़ब किया तिरे वअ'दे पे ए'तिबार किया
तमाम रात क़यामत का इंतिज़ार किया
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क़रीने से अजब आरास्ता क़ातिल की महफ़िल है
मिरी आह का तुम असर देख लेना
साज़ ये कीना-साज़ क्या जानें
क्या क्या फ़रेब दिल को दिए इज़्तिराब में
दिल चुरा कर नज़र चुराई है
सुनाई जाती हैं दर-पर्दा गालियाँ मुझ को
बे-ज़बानी ज़बाँ न हो जाए
अयादत को मिरी आ कर वो ये ताकीद करते हैं
ग़म्ज़ा भी हो सफ़्फ़ाक निगाहें भी हों ख़ूँ-रेज़
कहीं है ईद की शादी कहीं मातम है मक़्तल में
डरते हैं चश्म ओ ज़ुल्फ़ ओ निगाह ओ अदा से हम
जिस ख़त पे ये लगाई उसी का मिला जवाब