वो जाते हैं आती है क़यामत की सहर आज
रोता है दुआओं से गले मिल के असर आज
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दिल दे तो इस मिज़ाज का परवरदिगार दे
फिर गया जब से कोई आ के हमारे दर तक
ब'अद मुद्दत के ये ऐ 'दाग़' समझ में आया
मिन्नतों से भी न वो हूर-शमाइल आया
हज़रत-ए-दिल आप हैं किस ध्यान में
आओ मिल जाओ कि ये वक़्त न पाओगे कभी
मिरी आह का तुम असर देख लेना
रहा न दिल में वो बेदर्द और दर्द रहा
क़रीने से अजब आरास्ता क़ातिल की महफ़िल है
शब-ए-विसाल है गुल कर दो इन चराग़ों को
शोख़ी से ठहरती नहीं क़ातिल की नज़र आज
जोश-ए-रहमत के वास्ते ज़ाहिद