शोख़ी से ठहरती नहीं क़ातिल की नज़र आज
ये बर्क़-ए-बला देखिए गिरती है किधर आज
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चाक हो पर्दा-ए-वहशत मुझे मंज़ूर नहीं
हमारी तरफ़ अब वो कम देखते हैं
बाक़ी जहाँ में क़ैस न फ़रहाद रह गया
कल तक तो आश्ना थे मगर आज ग़ैर हो
कौन सा ताइर-ए-गुम-गश्ता उसे याद आया
उन की फ़रमाइश नई दिन रात है
रूह किस मस्त की प्यासी गई मय-ख़ाने से
जिस ख़त पे ये लगाई उसी का मिला जवाब
'दाग़' को कौन देने वाला था
जोश-ए-रहमत के वास्ते ज़ाहिद
ज़माने के क्या क्या सितम देखते हैं
तुम्हारा दिल मिरे दिल के बराबर हो नहीं सकता