दिल दे तो इस मिज़ाज का परवरदिगार दे
जो रंज की घड़ी भी ख़ुशी से गुज़ार दे
Gulzar
Rahat Indori
Parveen Shakir
Wasi Shah
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(3097) Peoples Rate This
जली हैं धूप में शक्लें जो माहताब की थीं
तुम अगर अपनी गूँ के हो माशूक़
इस क़दर नाज़ है क्यूँ आप को यकताई का
मिलाते हो उसी को ख़ाक में जो दिल से मिलता है
ग़ज़ब किया तिरे वअ'दे पे ए'तिबार किया
जिस में लाखों बरस की हूरें हों
सब लोग जिधर वो हैं उधर देख रहे हैं
अब तो बीमार-ए-मोहब्बत तेरे
अच्छी सूरत पे ग़ज़ब टूट के आना दिल का
वो ज़माना नज़र नहीं आता
तुम को आशुफ़्ता-मिज़ाजों की ख़बर से क्या काम