यूँ भी हज़ारों लाखों में तुम इंतिख़ाब हो
पूरा करो सवाल तो फिर ला-जवाब हो
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क्या क्या फ़रेब दिल को दिए इज़्तिराब में
जो तुम्हारी तरह तुम से कोई झूटे वादे करता
ना-रवा कहिए ना-सज़ा कहिए
चाह की चितवन में आँख उस की शरमाई हुई
तबीअ'त कोई दिन में भर जाएगी
'मीर' का रंग बरतना नहीं आसाँ ऐ 'दाग़'
खुलता नहीं है राज़ हमारे बयान से
दिल ले के मुफ़्त कहते हैं कुछ काम का नहीं
आओ मिल जाओ कि ये वक़्त न पाओगे कभी
अब तो बीमार-ए-मोहब्बत तेरे
ये गुस्ताख़ी ये छेड़ अच्छी नहीं है ऐ दिल-ए-नादाँ
फ़सुर्दा-दिल कभी ख़ल्वत न अंजुमन में रहे