छल Poetry (page 11)

दिल मेरा तेरा ताब-ए-फ़रमाँ है क्या करूँ

बहज़ाद लखनवी

चश्म-ए-हसीं में है न रुख़-ए-फ़ित्ना-गर में है

बहज़ाद लखनवी

ये साक़ी की करामत है कि फ़ैज़-ए-मय-परस्ती है

बेदम शाह वारसी

रौनक़ फ़रोग़-ए-दर्द से कुछ अंजुमन में है

बेबाक भोजपुरी

आएँगे गर उन्हें ग़ैरत होगी

बयान मेरठी

पता नहीं वो कौन था

बशर नवाज़

लरज़ लरज़ के न टूटें तो वो सितारे क्या

बाक़र मेहदी

ऐम्बुलेंस

बलराज कोमल

वाक़िफ़ हैं हम कि हज़रत-ए-ग़म ऐसे शख़्स हैं

ज़फ़र

नहीं इश्क़ में इस का तो रंज हमें कि क़रार ओ शकेब ज़रा न रहा

ज़फ़र

करेंगे क़स्द हम जिस दम तुम्हारे घर में आवेंगे

ज़फ़र

जब कभी दरिया में होते साया-अफ़गन आप हैं

ज़फ़र

इतना न अपने जामे से बाहर निकल के चल

ज़फ़र

दमक उठी है फ़ज़ा माहताब-ए-ख़्वाब के साथ

बद्र-ए-आलम ख़लिश

बहुत क़रीने की ज़िंदगी थी अजब क़यामत में आ बसा हूँ

अज़्म बहज़ाद

अजीब कैफ़ियत आख़िर तलक रही दिल की

अज़ीज़ुर्रहमान शहीद फ़तेहपुरी

ख़ल्वत हुई है अंजुमन-आरा कभी कभी

अज़ीज़ तमन्नाई

अब कौन सी मता-ए-सफ़र दिल के पास है

अज़ीज़ तमन्नाई

नाला-ए-बे-आसमाँ

अज़ीज़ क़ैसी

ये ग़लत है ऐ दिल-ए-बद-गुमाँ कि वहाँ किसी का गुज़र नहीं

अज़ीज़ लखनवी

जीते हैं कैसे ऐसी मिसालों को देखिए

अज़ीज़ लखनवी

जीते हैं कैसे ऐसी मिसालों को देखिए

अज़ीज़ लखनवी

इस वहम की इंतिहा नहीं है

अज़ीज़ लखनवी

दिल आया इस तरह आख़िर फ़रे‌‌‌‌ब-ए-साज़-ओ-सामाँ में

अज़ीज़ लखनवी

चश्म-ए-साक़ी का तसव्वुर बज़्म में काम आ गया

अज़ीज़ लखनवी

खुला ये दिल पे कि तामीर-ए-बाम-ओ-दर है फ़रेब

अज़ीज़ हामिद मदनी

जो बात दिल में थी उस से नहीं कही हम ने

अज़ीज़ हामिद मदनी

दो गज़ ज़मीं फ़रेब-ए-वतन के लिए मिली

अज़ीज़ हामिद मदनी

निसार यूँ तो हुआ तुझ पे नक़्द-ए-जाँ क्या क्या

अज़ीज़ हामिद मदनी

लिखी हुई जो तबाही है उस से क्या जाता

अज़ीज़ हामिद मदनी

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