शौक़ के मुम्किनात को दोनों ही आज़मा चुके
तुम भी फ़रेब खा चुके हम भी फ़रेब खा चुके
Gulzar
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Allama Iqbal
Habib Jalib
Parveen Shakir
Anwar Masood
Wasi Shah
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शायद अभी बाक़ी है कुछ आग मोहब्बत की
बात अब आई समझ में कि हक़ीक़त क्या थी
तुम इस तरफ़ से गुज़र चुकी हो मगर गली गुनगुना रही है
बड़ी मुश्किलों से काटा बड़े कर्ब से गुज़ारा
नज़र आती है सारी काएनात-ए-मै-कदा रौशन
ख़याल के फूल खिल रहे हैं बहार के गीत गा रहा हूँ
याद तेरी जो कभी आती है बहलाने को