शायद अभी बाक़ी है कुछ आग मोहब्बत की
माज़ी की चिताओं से उठता है धुआँ 'एहसाँ'
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बड़ी मुश्किलों से काटा बड़े कर्ब से गुज़ारा
नज़र आती है सारी काएनात-ए-मै-कदा रौशन
तुम इस तरफ़ से गुज़र चुकी हो मगर गली गुनगुना रही है
ख़याल के फूल खिल रहे हैं बहार के गीत गा रहा हूँ
बात अब आई समझ में कि हक़ीक़त क्या थी
शौक़ के मुम्किनात को दोनों ही आज़मा चुके
याद तेरी जो कभी आती है बहलाने को