मुफ़लिसी में मिज़ाज शाहाना
किस मरज़ की दवा करे कोई
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आप से आप अयाँ शाहिद-ए-मअ'नी होगा
पहुँची यहाँ भी शैख़ ओ बरहमन की कश्मकश
साया अगर नसीब हो दीवार-ए-यार का
वहशत थी हम थे साया-ए-दीवार-ए-यार था
मुझे दिल की ख़ता पर 'यास' शरमाना नहीं आता
चारा नहीं कोई जलते रहने के सिवा
मरते दम तक तिरी तलवार का दम भरते रहे
क्यूँ मतलब-ए-हस्ती-ओ-अदम खुल जाता
क्यूँ किसी से वफ़ा करे कोई
शर्बत का घूँट जान के पीता हूँ ख़ून-ए-दिल
ख़ुदी का नश्शा चढ़ा आप में रहा न गया
का'बा नहीं कि सारी ख़ुदाई को दख़्ल हो