चारा नहीं कोई जलते रहने के सिवा
साँचे में फ़ना के ढलते रहने के सिवा
ऐ शम्अ' तिरी हयात-ए-फ़ानी क्या है
झोंका खाने सँभलते रहने के सिवा
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'यास' इस चर्ख़-ए-ज़माना-साज़ का क्या ए'तिबार
परवाने कहाँ मरते बिछड़ते पहुँचे
हाँ ऐ दिल-ए-ईज़ा-तलब आराम न ले
का'बा नहीं कि सारी ख़ुदाई को दख़्ल हो
साक़ी मैं देखता हूँ ज़मीं आसमाँ का फ़र्क़
क्यूँ किसी से वफ़ा करे कोई
सब्र करना सख़्त मुश्किल है तड़पना सहल है
दुनिया से अलग जा के कहीं सर फोड़ो
ऐसा न हो हक़ का सामना हो जाए
दुनिया-तलबी जाएगी क्या जान के साथ
ख़ुदा जाने अजल को पहले किस पर रहम आएगा
कशिश-ए-लखनऊ अरे तौबा