शर्बत का घूँट जान के पीता हूँ ख़ून-ए-दिल
ग़म खाते खाते मुँह का मज़ा तक बिगड़ गया
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दुनिया का चलन तर्क किया भी नहीं जाता
ख़ुदा ही जाने 'यगाना' मैं कौन हूँ क्या हूँ
ख़ुदाओं की ख़ुदाई हो चुकी बस
दिल लगाने की जगह आलम-ए-ईजाद नहीं
पयाम-ए-ज़ेर-ए-लब ऐसा कि कुछ सुना न गया
वल्लाह ये ज़िंदगी भी है क़ाबिल-ए-दीद
दीवाना-वार दौड़ के कोई लिपट न जाए
क्यूँ मतलब-ए-हस्ती-ओ-अदम खुल जाता
दुनिया-तलबी जाएगी क्या जान के साथ
मुश्किल कोई मुश्किल नहीं जीने के सिवा
दैर ओ हरम भी ढह गए जब दिल नहीं रहा
कारगाह-ए-दुनिया की नेस्ती भी हस्ती है