उम्मीद-ओ-बीम ने मारा मुझे दो-राहे पर
कहाँ के दैर ओ हरम घर का रास्ता न मिला
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मुसीबत का पहाड़ आख़िर किसी दिन कट ही जाएगा
आप से आप अयाँ शाहिद-ए-मअ'नी होगा
बे-दर्द हो क्या जानो मुसीबत के मज़े
पहुँची यहाँ भी शैख़ ओ बरहमन की कश्मकश
मुफ़्लिस को मज़ा ज़ीस्त का चखने न दिया
शर्बत का घूँट जान के पीता हूँ ख़ून-ए-दिल
इम्तियाज़-ए-सूरत-ओ-मअ'नी से बेगाना हुआ
दामन-ए-क़ातिल जो उड़ उड़ कर हवा देने लगे
ख़ुदा ही जाने 'यगाना' मैं कौन हूँ क्या हूँ
छुट-भय्यों की शाइ'री का ये ज़ोर ये शोर
दूर से देखने का 'यास' गुनहगार हूँ मैं
अदब ने दिल के तक़ाज़े उठाए हैं क्या क्या