इम्तियाज़-ए-सूरत-ओ-मअ'नी से बेगाना हुआ
आइने को आइना हैराँ को हैराँ देख कर
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पयाम-ए-ज़ेर-ए-लब ऐसा कि कुछ सुना न गया
रंग बदला फिर हवा का मय-कशों के दिन फिरे
बैठा हूँ पाँव तोड़ के तदबीर देखना
का'बा नहीं कि सारी ख़ुदाई को दख़्ल हो
वाइज़ की आँखें खुल गईं पीते ही साक़िया
दुनिया से 'यास' जाने को जी चाहता नहीं
हाँ ऐ दिल-ए-ईज़ा-तलब आराम न ले
बे-धड़क पिछले पहर नाला-ओ-शेवन न करें
यार है आइना है शाना है
सुब्ह-ए-अज़ल ओ शाम-ए-अबद कुछ भी नहीं
'यगाना' वही फ़ातेह-ए-लखनऊ हैं
हाथ उलझा है गरेबाँ में तो घबराओ न 'यास'