दुनिया से 'यास' जाने को जी चाहता नहीं
अल्लाह रे हुस्न गुलशन-ए-ना-पाएदार का
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Rahat Indori
Anwar Masood
Gulzar
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(870) Peoples Rate This
यकसाँ कभी किसी की न गुज़री ज़माने में
'यास' इस चर्ख़-ए-ज़माना-साज़ का क्या ए'तिबार
आप से आप अयाँ शाहिद-ए-मअ'नी होगा
मुझे ऐ नाख़ुदा आख़िर किसी को मुँह दिखाना है
बाज़ आ साहिल पे ग़ोते खाने वाले बाज़ आ
जब हुस्न-ए-बे-मिसाल पर इतना ग़ुरूर था
मुझे दिल की ख़ता पर 'यास' शरमाना नहीं आता
साया अगर नसीब हो दीवार-ए-यार का
परवाने कहाँ मरते बिछड़ते पहुँचे
रंग बदला फिर हवा का मय-कशों के दिन फिरे
साक़ी मैं देखता हूँ ज़मीं आसमाँ का फ़र्क़
देखे हैं बहुत चमन उजड़ते बस्ते