बाज़ आ साहिल पे ग़ोते खाने वाले बाज़ आ
डूब मरने का मज़ा दरिया-ए-बे-साहिल में है
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फ़र्दा को दूर ही से हमारा सलाम है
मुझे दिल की ख़ता पर 'यास' शरमाना नहीं आता
मंज़िल का पता है न ठिकाना मा'लूम
दुनिया से 'यास' जाने को जी चाहता नहीं
दिल लगाने की जगह आलम-ए-ईजाद नहीं
गुनाह गिन के मैं क्यूँ अपने दिल को छोटा करूँ
दुनिया में रह के रास्त-बाज़ी कब तक
ख़ुदा ही जाने 'यगाना' मैं कौन हूँ क्या हूँ
क़िस्सा किताब-ए-उम्र का क्या मुख़्तसर हुआ
ज़माना ख़ुदा को ख़ुदा जानता है
आ रही है ये सदा कान में वीरानों से