दुनिया में रह के रास्त-बाज़ी कब तक
मुश्किल है कुछ आसाँ नहीं सीधा मस्लक
सच बोल के क्या हुसैन बनना है तुझे
इतना सच बोल दाल में जैसे नमक
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Gulzar
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Rahat Indori
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दर्द अपना कुछ और है दवा है कुछ और
दैर ओ हरम भी ढह गए जब दिल नहीं रहा
सुब्ह-ए-अज़ल ओ शाम-ए-अबद कुछ भी नहीं
आँख दिखलाने लगा है वो फ़ुसूँ-साज़ मुझे
अगर अपनी चश्म-ए-नम पर मुझे इख़्तियार होता
दर्द हो तो दवा भी मुमकिन है
दीवाना-वार दौड़ के कोई लिपट न जाए
मुमकिन नहीं अंदेशा-ए-फ़र्दा कम हो
बाज़ आ साहिल पे ग़ोते खाने वाले बाज़ आ
गुनाह गिन के मैं क्यूँ अपने दिल को छोटा करूँ
हुस्न-ए-ज़ाती भी छुपाए से कहीं छुपता है
बैठा हूँ पाँव तोड़ के तदबीर देखना