दर्द हो तो दवा भी मुमकिन है
वहम की क्या दवा करे कोई
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ठोकरें खिलवाईं क्या-क्या पा-ए-बे-ज़ंजीर ने
दर्द अपना कुछ और है दवा है कुछ और
आँख दिखलाने लगा है वो फ़ुसूँ-साज़ मुझे
आ रही है ये सदा कान में वीरानों से
रोना है बदा जिन्हें वो जम जम रोएँ
दुनिया-तलबी जाएगी क्या जान के साथ
छुट-भय्यों की शाइ'री का ये ज़ोर ये शोर
मुझे दिल की ख़ता पर 'यास' शरमाना नहीं आता
बे-धड़क पिछले पहर नाला-ओ-शेवन न करें
पुकारता रहा किस किस को डूबने वाला
क्यूँ मतलब-ए-हस्ती-ओ-अदम खुल जाता
सुब्ह-ए-अज़ल ओ शाम-ए-अबद कुछ भी नहीं