पुकारता रहा किस किस को डूबने वाला
ख़ुदा थे इतने मगर कोई आड़े आ न गया
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पर्दा-ए-हिज्र वही हस्ती-ए-मौहूम थी 'यास'
शर्बत का घूँट जान के पीता हूँ ख़ून-ए-दिल
मुझे दिल की ख़ता पर 'यास' शर्माना नहीं आता
यूसुफ़ को उस अंजुमन में क्या ढूँढता है
दुनिया से अलग जा के कहीं सर फोड़ो
ग़ालिब और मीरज़ा 'यगाना' का
ऐसा न हो हक़ का सामना हो जाए
हुस्न-ए-ज़ाती भी छुपाए से कहीं छुपता है
दैर ओ हरम भी ढह गए जब दिल नहीं रहा
'यास' इस चर्ख़-ए-ज़माना-साज़ का क्या ए'तिबार
वाँ नक़ाब उट्ठी कि सुब्ह-ए-हश्र का मंज़र खुला
क्यूँ मतलब-ए-हस्ती-ओ-अदम खुल जाता