ग़ालिब और मीरज़ा 'यगाना' का
आज क्या फ़ैसला करे कोई
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वही साक़ी वही साग़र वही शीशा वही बादा
दिल लगाने की जगह आलम-ए-ईजाद नहीं
रोना है बदा जिन्हें वो जम जम रोएँ
मौजों से लिपट के पार उतरने वाले
जैसे दोज़ख़ की हवा खा के अभी आया हो
ख़ुदा की मार वो अय्याम-ए-शोर-ओ-शर गुज़रे
हाँ ऐ दिल-ए-ईज़ा-तलब आराम न ले
बाज़ आ साहिल पे ग़ोते खाने वाले बाज़ आ
ख़ुदाओं की ख़ुदाई हो चुकी बस
यकसाँ कभी किसी की न गुज़री ज़माने में
देखूँ कब तक गुलों की ये तिश्ना-लबी
न संग-ए-मील न नक़्श-ए-क़दम न बाँग-ए-जरस