रोना है बदा जिन्हें वो जम जम रोएँ
जब ऐश मुहय्या हो तो हम क्यूँ खोएँ
फ़र्दा मा'लूम ओ राज़-ए-फ़र्दा मा'लूम
रात अपनी है फिर क्यूँ न मज़े से सोएँ
Jaun Eliya
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Habib Jalib
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ख़ुदी का नश्शा चढ़ा आप में रहा न गया
ऐसा न हो हक़ का सामना हो जाए
सुब्ह-ए-अज़ल ओ शाम-ए-अबद कुछ भी नहीं
मरते दम तक तिरी तलवार का दम भरते रहे
वाइज़ को मुनासिब नहीं रिंदों से तने
ख़ुदा ही जाने 'यगाना' मैं कौन हूँ क्या हूँ
मुझे ऐ नाख़ुदा आख़िर किसी को मुँह दिखाना है
दर्द हो तो दवा भी मुमकिन है
न संग-ए-मील न नक़्श-ए-क़दम न बाँग-ए-जरस
चले चलो जहाँ ले जाए वलवला दिल का
मुसीबत का पहाड़ आख़िर किसी दिन कट ही जाएगा
दुनिया में रह के रास्त-बाज़ी कब तक