सुब्ह-ए-अज़ल ओ शाम-ए-अबद कुछ भी नहीं
इक वुसअ'त-ए-मौहूम है हद कुछ भी नहीं
क्या जानिए क्या है आलम-ए-कौन-ओ-फ़साद
दा'वे तो बहुत कुछ हैं सनद कुछ भी नहीं
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काम दीवानों को शहरों से न बाज़ारों से
दर्द अपना कुछ और है दवा है कुछ और
क्यूँ किसी से वफ़ा करे कोई
बुतों को देख के सब ने ख़ुदा को पहचाना
पहुँची यहाँ भी शैख़ ओ बरहमन की कश्मकश
मुझे दिल की ख़ता पर 'यास' शरमाना नहीं आता
मुफ़लिसी में मिज़ाज शाहाना
दीवाना-ए-इश्क़ को नसीहत तौबा
परवाने कहाँ मरते बिछड़ते पहुँचे
पर्दा-ए-हिज्र वही हस्ती-ए-मौहूम थी 'यास'
आप से आप अयाँ शाहिद-ए-मअ'नी होगा
पुकारता रहा किस किस को डूबने वाला