न संग-ए-मील न नक़्श-ए-क़दम न बाँग-ए-जरस
भटक न जाएँ मुसाफ़िर अदम की मंज़िल के
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Anwar Masood
Gulzar
Allama Iqbal
Wasi Shah
Parveen Shakir
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ज़माना ख़ुदा को ख़ुदा जानता है
रोना है बदा जिन्हें वो जम जम रोएँ
ख़ुदी का नश्शा चढ़ा आप में रहा न गया
पयाम-ए-ज़ेर-ए-लब ऐसा कि कुछ सुना न गया
अगर अपनी चश्म-ए-नम पर मुझे इख़्तियार होता
दिल लगाने की जगह आलम-ए-ईजाद नहीं
मौजों से लिपट के पार उतरने वाले
ख़ुदाओं की ख़ुदाई हो चुकी बस
हाथ उलझा है गरेबाँ में तो घबराओ न 'यास'
दैर ओ हरम भी ढह गए जब दिल नहीं रहा
दिल को हद से सिवा धड़कने न दिया