दिल को हद से सिवा धड़कने न दिया
क़ालिब में रूह को फड़कने न दिया
क्या आग थी सीने में जिसे फ़ितरत ने
रौशन तो क्या मगर भड़कने न दिया
Gulzar
Habib Jalib
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Jaun Eliya
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Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
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दुनिया का चलन तर्क किया भी नहीं जाता
बाज़ आ साहिल पे ग़ोते खाने वाले बाज़ आ
ग़ालिब और मीरज़ा 'यगाना' का
दुनिया में रह के रास्त-बाज़ी कब तक
अरमान निकलने का मज़ा है कुछ और
दर्द अपना कुछ और है दवा है कुछ और
पहाड़ काटने वाले ज़मीं से हार गए
कारगाह-ए-दुनिया की नेस्ती भी हस्ती है
ऐसा न हो हक़ का सामना हो जाए
वही साक़ी वही साग़र वही शीशा वही बादा
दीवाना-ए-इश्क़ को नसीहत तौबा
दूर से देखने का 'यास' गुनहगार हूँ मैं