कारगाह-ए-दुनिया की नेस्ती भी हस्ती है
इक तरफ़ उजड़ती है एक सम्त बसती है
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बादल को लगी खिलते बरसते कुछ देर
दर्द हो तो दवा भी मुमकिन है
उम्मीद-ओ-बीम ने मारा मुझे दो-राहे पर
सब्र करना सख़्त मुश्किल है तड़पना सहल है
पर्दा-ए-हिज्र वही हस्ती-ए-मौहूम थी 'यास'
यकसाँ कभी किसी की न गुज़री ज़माने में
बे-दर्द हो क्या जानो मुसीबत के मज़े
हाँ ऐ दिल-ए-ईज़ा-तलब आराम न ले
दुनिया का चलन तर्क किया भी नहीं जाता
हाथ उलझा है गरेबाँ में तो घबराओ न 'यास'
दीवाना-ए-इश्क़ को नसीहत तौबा
दिल लगाने की जगह आलम-ए-ईजाद नहीं