हाथ उलझा है गरेबाँ में तो घबराओ न 'यास'
बेड़ियाँ क्यूँकर कटीं ज़िंदाँ का दर क्यूँकर खुला
Allama Iqbal
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Wasi Shah
Gulzar
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Jaun Eliya
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(772) Peoples Rate This
बे-दर्द हो क्या जानो मुसीबत के मज़े
मुझे दिल की ख़ता पर 'यास' शर्माना नहीं आता
देखूँ कब तक गुलों की ये तिश्ना-लबी
ख़ुदी का नश्शा चढ़ा आप में रहा न गया
रौशन तमाम काबा ओ बुत-ख़ाना हो गया
दीवाना-ए-इश्क़ को नसीहत तौबा
मुफ़्लिस को मज़ा ज़ीस्त का चखने न दिया
वाइज़ की आँखें खुल गईं पीते ही साक़िया
बादल को लगी खिलते बरसते कुछ देर
वाँ नक़ाब उट्ठी कि सुब्ह-ए-हश्र का मंज़र खुला
ख़ुदा जाने अजल को पहले किस पर रहम आएगा
दामन-ए-क़ातिल जो उड़ उड़ कर हवा देने लगे