अरमान निकलने का मज़ा है कुछ और
और रश्क से जलने का मज़ा है कुछ और
हाँ याद है दोस्त से लिपटना लेकिन
दुश्मन को कुचलने का मज़ा है कुछ और
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वाँ नक़ाब उट्ठी कि सुब्ह-ए-हश्र का मंज़र खुला
क़िस्सा किताब-ए-उम्र का क्या मुख़्तसर हुआ
कारगाह-ए-दुनिया की नेस्ती भी हस्ती है
वाइज़ को मुनासिब नहीं रिंदों से तने
ख़ुदा ही जाने 'यगाना' मैं कौन हूँ क्या हूँ
हाँ ऐ दिल-ए-ईज़ा-तलब आराम न ले
का'बा नहीं कि सारी ख़ुदाई को दख़्ल हो
अपनी हद से गुज़र गए अब क्या है
जैसे दोज़ख़ की हवा खा के अभी आया हो
उदासी छा गई चेहरे पे शम-ए-महफ़िल के
पहुँची यहाँ भी शैख़ ओ बरहमन की कश्मकश