अपनी हद से गुज़र गए अब क्या है
मंजधार से पार उतर गए अब किया है
ऐ शौक़-ए-विसाल ऐ तमन्ना-ए-सुकूँ
दोनों पल्ले तो भर गए अब क्या है
Jaun Eliya
Anwar Masood
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Gulzar
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
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दामन-ए-क़ातिल जो उड़ उड़ कर हवा देने लगे
जब हुस्न-ए-बे-मिसाल पर इतना ग़ुरूर था
यूसुफ़ को उस अंजुमन में क्या ढूँढता है
जैसे दोज़ख़ की हवा खा के अभी आया हो
पहाड़ काटने वाले ज़मीं से हार गए
हुस्न-ए-ज़ाती भी छुपाए से कहीं छुपता है
दुनिया के साथ दीन की बेगार अल-अमाँ
दिल लगाने की जगह आलम-ए-ईजाद नहीं
अदब ने दिल के तक़ाज़े उठाए हैं क्या क्या
'यगाना' वही फ़ातेह-ए-लखनऊ हैं
बादल को लगी खिलते बरसते कुछ देर
परवाने कहाँ मरते बिछड़ते पहुँचे