दुनिया के साथ दीन की बेगार अल-अमाँ
इंसान आदमी न हुआ जानवर हुआ
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इम्तियाज़-ए-सूरत-ओ-मअ'नी से बेगाना हुआ
दर्द अपना कुछ और है दवा है कुछ और
ख़ुदाओं की ख़ुदाई हो चुकी बस
कोई तुझ को पुकारता जाता है
सलामत रहें दिल में घर करने वाले
बाज़ आ साहिल पे ग़ोते खाने वाले बाज़ आ
ख़ुदा की मार वो अय्याम-ए-शोर-ओ-शर गुज़रे
दुनिया से 'यास' जाने को जी चाहता नहीं
वाइज़ की आँखें खुल गईं पीते ही साक़िया
पहुँची यहाँ भी शैख़ ओ बरहमन की कश्मकश
चले चलो जहाँ ले जाए वलवला दिल का
वल्लाह ये ज़िंदगी भी है क़ाबिल-ए-दीद