कोई तुझ को पुकारता जाता है
कोई हिम्मत ही हारता जाता है
कोई तह को सुधारता जाता है
दरिया है कि मौजें मारता जाता है
Gulzar
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ख़ुदा ही जाने 'यगाना' मैं कौन हूँ क्या हूँ
दर्द अपना कुछ और है दवा है कुछ और
काम दीवानों को शहरों से न बाज़ारों से
जैसे दोज़ख़ की हवा खा के अभी आया हो
दिल को हद से सिवा धड़कने न दिया
छुट-भय्यों की शाइ'री का ये ज़ोर ये शोर
'यास' इस चर्ख़-ए-ज़माना-साज़ का क्या ए'तिबार
बे-धड़क पिछले पहर नाला-ओ-शेवन न करें
ख़ुदाओं की ख़ुदाई हो चुकी बस
ऐसा न हो हक़ का सामना हो जाए
दैर ओ हरम भी ढह गए जब दिल नहीं रहा
मुझे दिल की ख़ता पर 'यास' शरमाना नहीं आता