मौजों से लिपट के पार उतरने वाले
तूफ़ान-ए-बला से नहीं डरने वाले
कुछ बस न चला तो जान पर खेल गए
क्या चाल चले हैं डूब मरने वाले
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ख़ुदा जाने अजल को पहले किस पर रहम आएगा
'यास' इस चर्ख़-ए-ज़माना-साज़ का क्या ए'तिबार
हाँ ऐ दिल-ए-ईज़ा-तलब आराम न ले
पहाड़ काटने वाले ज़मीं से हार गए
दुनिया के साथ दीन की बेगार अल-अमाँ
वहशत थी हम थे साया-ए-दीवार-ए-यार था
मुफ़लिसी में मिज़ाज शाहाना
का'बा नहीं कि सारी ख़ुदाई को दख़्ल हो
कारगाह-ए-दुनिया की नेस्ती भी हस्ती है
जब हुस्न-ए-बे-मिसाल पर इतना ग़ुरूर था
परवाने कहाँ मरते बिछड़ते पहुँचे
दर्द अपना कुछ और है दवा है कुछ और