मंज़िल का पता है न ठिकाना मा'लूम
जब तक न हो गुमराह न आना मा'लूम
खो लेता है इंसान तो कुछ पाता है
खोया ही नहीं तू ने तो पाना मा'लूम
Rahat Indori
Gulzar
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(954) Peoples Rate This
दीवाना-ए-इश्क़ को नसीहत तौबा
फ़र्दा को दूर ही से हमारा सलाम है
सब्र करना सख़्त मुश्किल है तड़पना सहल है
अरमान निकलने का मज़ा है कुछ और
दुनिया से अलग जा के कहीं सर फोड़ो
मुसीबत का पहाड़ आख़िर किसी दिन कट ही जाएगा
क्यूँ किसी से वफ़ा करे कोई
मौत माँगी थी ख़ुदाई तो नहीं माँगी थी
मुश्किल कोई मुश्किल नहीं जीने के सिवा
न संग-ए-मील न नक़्श-ए-क़दम न बाँग-ए-जरस
ठोकरें खिलवाईं क्या-क्या पा-ए-बे-ज़ंजीर ने
हुस्न-ए-ज़ाती भी छुपाए से कहीं छुपता है