मुश्किल कोई मुश्किल नहीं जीने के सिवा
ख़ामोश लहू का घूँट पीने के सिवा
खुलते हैं जभी जौहर-ए-तस्लीम-ओ-रज़ा
जब कोई सिपर ही न हो सीने के सिवा
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इम्तियाज़-ए-सूरत-ओ-मअ'नी से बेगाना हुआ
देखे हैं बहुत चमन उजड़ते बस्ते
पहाड़ काटने वाले ज़मीं से हार गए
साक़ी मैं देखता हूँ ज़मीं आसमाँ का फ़र्क़
मुझे दिल की ख़ता पर 'यास' शर्माना नहीं आता
सुब्ह-ए-अज़ल ओ शाम-ए-अबद कुछ भी नहीं
पहुँची यहाँ भी शैख़ ओ बरहमन की कश्मकश
शर्बत का घूँट जान के पीता हूँ ख़ून-ए-दिल
देखूँ कब तक गुलों की ये तिश्ना-लबी
उम्मीद-ओ-बीम ने मारा मुझे दो-राहे पर
बे-दर्द हो क्या जानो मुसीबत के मज़े
न संग-ए-मील न नक़्श-ए-क़दम न बाँग-ए-जरस