मुमकिन नहीं अंदेशा-ए-फ़र्दा कम हो
हाँ तिश्ना-ए-ग़फ़लत हो तो ईज़ा कम हो
टलने की नहीं क़यामत अच्छा न टले
मुँह फेर लो अपना कि ये धड़का कम हो
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सब्र करना सख़्त मुश्किल है तड़पना सहल है
क़िस्सा किताब-ए-उम्र का क्या मुख़्तसर हुआ
अरमान निकलने का मज़ा है कुछ और
क़यामत है शब-ए-वादा का इतना मुख़्तसर होना
हुस्न-ए-ज़ाती भी छुपाए से कहीं छुपता है
पुकारता रहा किस किस को डूबने वाला
आ रही है ये सदा कान में वीरानों से
अगर अपनी चश्म-ए-नम पर मुझे इख़्तियार होता
झाँकने ताकने का वक़्त गया
बैठा हूँ पाँव तोड़ के तदबीर देखना
ख़ुदा की मार वो अय्याम-ए-शोर-ओ-शर गुज़रे
दुनिया से अलग जा के कहीं सर फोड़ो