कल यही बच्चे समुंदर को मुक़ाबिल पाएँगे
आज तैराते हैं जो काग़ज़ की नन्ही कश्तियाँ
Gulzar
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Jaun Eliya
Wasi Shah
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(779) Peoples Rate This
आज भी तेरी ही सूरत है मुक़ाबिल मेरे
दिल में तिरे ख़ुलूस समोया न जा सका
दिए बुझाती रही दिल बुझा सके तो बुझाए
क्या गुमाँ था कि न होगा कोई हम-सर अपना
गुमनाम शहीद का कतबा
बनाए जाता था मैं अपने हाथ को कश्कोल
ग़ज़ल में हुस्न का उस के बयान रखना है
उसे शिकस्त न होने पे मान कितना था
है तन्हाई में बहना आँसुओं का
रंग-ए-सियाह के नाम एक नज़्म
क्या होता है ख़िज़ाँ बहार के आने जाने से