रात Poetry (page 51)

मेरे आगे तज़्किरा माशूक़-ओ-आशिक़ का बुरा

इमदाद अली बहर

मर गए पर भी न हो बोझ किसी पर अपना

इमदाद अली बहर

मैं गिला तुम से करूँ ऐ यार किस किस बात का

इमदाद अली बहर

महबूब-ए-ख़ुदा ने तुझे नायाब बनाया

इमदाद अली बहर

कभी तो देखे हमारी अरक़-फ़िशानी धूप

इमदाद अली बहर

फ़ुर्क़त की आफ़त बुरे दिन काटना साल है

इमदाद अली बहर

अब मरना है अपने ख़ुशी है जीने से बे-ज़ारी है

इमदाद अली बहर

आज़ुर्दा हो गया वो ख़रीदार बे-सबब

इमदाद अली बहर

लम्हा मिरी गिरफ़्त में आया निकल गया

इम्दाद आकाश

मौसम सूखा सूखा सा था लेकिन ये क्या बात हुई

इमाम अाज़म

मौसम सूखा सूखा सा था लेकिन ये क्या बात हुई

इमाम अाज़म

थोड़ी चाँदी थोड़ा गारा लगता है

इलियास बाबर आवान

बाग़ इक दिन का है सो रात नहीं आने की

इलियास बाबर आवान

क्या जाने किस की धुन में रहा दिल-फ़िगार चाँद

इकराम जनजुआ

सब तरह के हालात को इम्कान में रक्खा

इफ्तिखार शफ़ी

वो मिला मुझ को न जाने ख़ोल कैसा ओढ़ कर

इफ़्तिख़ार नसीम

मिरे नुक़ूश तिरे ज़ेहन से मिटा देगा

इफ़्तिख़ार नसीम

है जुस्तुजू अगर इस को इधर भी आएगा

इफ़्तिख़ार नसीम

इक ख़ला, एक ला-इंतिहा और मैं

इफ़्तिख़ार मुग़ल

चूमता पानी, पानी पानी

इफ़्तेख़ार जालिब

यही लौ थी कि उलझती रही हर रात के साथ

इफ़्तिख़ार आरिफ़

सुब्ह सवेरे रन पड़ना है और घमसान का रन

इफ़्तिख़ार आरिफ़

शहर इल्म के दरवाज़े पर

इफ़्तिख़ार आरिफ़

एक उदास शाम के नाम

इफ़्तिख़ार आरिफ़

बद-शुगूनी

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ये बस्तियाँ हैं कि मक़्तल दुआ किए जाएँ

इफ़्तिख़ार आरिफ़

वही प्यास है वही दश्त है वही घराना है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

सजल कि शोर ज़मीनों में आशियाना करे

इफ़्तिख़ार आरिफ़

कोई मुज़्दा न बशारत न दुआ चाहती है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

खज़ाना-ए-ज़र-ओ-गौहर पे ख़ाक डाल के रख

इफ़्तिख़ार आरिफ़

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