रात Poetry (page 54)

गुल-बाँग थी गुलों की हमारा तराना था

हातिम अली मेहर

गरेबाँ हाथ में है पाँव में सहरा का दामाँ है

हातिम अली मेहर

दोपहर रात आ चुकी हीला-बहाना हो चुका

हातिम अली मेहर

दिल ले गई वो ज़ुल्फ़-ए-रसा काम कर गई

हातिम अली मेहर

बुतों का ज़िक्र करो वाइज़ ख़ुदा को किस ने देखा है

हातिम अली मेहर

ऐ 'मेहर' जो वाँ नक़ाब सर का

हातिम अली मेहर

शाम हो या कि सहर याद उन्हीं की रखनी

हसरत मोहानी

चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है

हसरत मोहानी

उन को जो शुग़्ल-ए-नाज़ से फ़ुर्सत न हो सकी

हसरत मोहानी

रविश-ए-हुस्न-ए-मुराआत चली जाती है

हसरत मोहानी

देखना भी तो उन्हें दूर से देखा करना

हसरत मोहानी

चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है

हसरत मोहानी

बरकतें सब हैं अयाँ दौलत-ए-रूहानी की

हसरत मोहानी

कम-तर या बेशतर गए हम

हसरत अज़ीमाबादी

आश्ना कब हो है ये ज़िक्र दिल-ए-शाद के साथ

हसरत अज़ीमाबादी

कटती है शब विसाल की पलकें झपकते ही

हसनैन आक़िब

खोए हुए पलों की कोई बात भी तो हो

हसनैन आक़िब

ज़िंदगी क्या यूँही नाशाद करेगी मुझ को

हाशिम रज़ा जलालपुरी

वो एक रात की गर्दिश में इतना हार गया

हसीब सोज़

दर-ओ-दीवार भी घर के बहुत मायूस थे हम से

हसीब सोज़

वो एक रात की गर्दिश में इतना हार गया

हसीब सोज़

हमारे ख़्वाब सब ताबीर से बाहर निकल आए

हसीब सोज़

उम्र सारी यूँही गुज़ारी है

हसन रिज़वी

पहले सी अब बात कहाँ है

हसन रिज़वी

खिलने लगे हैं फूल और पत्ते हरे हुए

हसन रिज़वी

सरा-ए-दिल में जगह दे तो काट लूँ इक रात

हसन नईम

याद का फूल सर-ए-शाम खिला तो होगा

हसन नईम

हुस्न के सेहर ओ करामात से जी डरता है

हसन नईम

ग़म से बिखरा न पाएमाल हुआ

हसन नईम

दिलों में आग लगाओ नवा-कशी ही करो

हसन नईम

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