चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है
हम को अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है
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दोपहर की धूप में मेरे बुलाने के लिए
मानूस हो चला था तसल्ली से हाल-ए-दिल
ख़ंदा-ए-अहल-ए-जहाँ की मुझे पर्वा क्या है
हक़ीक़त खुल गई 'हसरत' तिरे तर्क-ए-मोहब्बत की
मुझ को देखो मिरे मरने की तमन्ना देखो
घटेगा तेरे कूचे में वक़ार आहिस्ता आहिस्ता
खींच लेना वो मिरा पर्दे का कोना दफ़अतन
चाहत मिरी चाहत ही नहीं आप के नज़दीक
ताबाँ जो नूर-ए-हुस्न ब-सिमा-ए-इश्क़ है
नज़्ज़ारा-ए-पैहम का सिला मेरे लिए है
है मश्क़-ए-सुख़न जारी चक्की की मशक़्क़त भी
छुप के उस ने जो ख़ुद-नुमाई की