कटती है शब विसाल की पलकें झपकते ही
जिस की सुब्ह न हो कभी वो रात भी तो हो
Javed Akhtar
Rahat Indori
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Gulzar
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(863) Peoples Rate This
हार कर बाज़ी फिर इक तदबीर हो जाऊँगा मैं
गरचे हल्का सा धुँदलका है तसव्वुर भी तिरा
लफ़्ज़ों के हेर-फेर से बनती नहीं ग़ज़ल
खोए हुए पलों की कोई बात भी तो हो
ख़ाना-ए-दिल कि मोअत्तर भी बहुत लगता है
दानाइयाँ अटक गईं लफ़्ज़ों के जाल में
और थोड़ा सा बिखर जाऊँ यही ठानी है
किस के दिल में बसता हूँ
ख़ुद को कभी मैं पा न सका
ग़म उठाता हूँ ग़ज़ल कहता हूँ जीता रहता हूँ