जंगल Poetry (page 10)

ख़ाना-ब-दोश

गुलज़ार

एक दौर

गुलज़ार

दिल में ऐसे ठहर गए हैं ग़म

गुलज़ार

दिल जलाने से कहाँ दूर अंधेरा होगा

गोपाल मित्तल

सहरा जंगल सागर पर्बत

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

पेड़ अगर ऊँचा मिलता है

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

माज़ी! तुझ से ''हाल'' मिरा शर्मिंदा है

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

ऊँचे दर्जे का सैलाब

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

रात का हर इक मंज़र रंजिशों से बोझल था

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

हर इक मकान को है मकीं से शरफ़ 'असद'

ग़ालिब

सर-गश्तगी में आलम-ए-हस्ती से यास है

ग़ालिब

तेज़ आँधी रात अँधयारी अकेला राह-रौ

फ़ुज़ैल जाफ़री

निभेगी किस तरह दिल सोचता है

फ़ुज़ैल जाफ़री

नौमीद करे दिल को न मंज़िल का पता दे

फ़ुज़ैल जाफ़री

जब जंगल बस्ती में आया

फ़ज़्ल ताबिश

आ के हो जा बे-लिबास

फ़ज़्ल ताबिश

मैं अक्सर खो सा जाता हूँ गली-कूचों के जंगल में

फ़ाज़िल जमीली

गुज़रती है जो दिल पर वो कहानी याद रखता हूँ

फ़ाज़िल जमीली

राएगाँ सब कुछ हुआ कैसी बसीरत क्या हुनर

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

मुद्दतों के बाद फिर कुंज-ए-हिरा रौशन हुआ

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

और मैं चुप रहा

फ़ारूक़ नाज़की

क्यूँ दिया था? बता! मेरी वीरानियों में सहारा मुझे

फरीहा नक़वी

दिल के घाव जब आँखों में आते हैं

फ़ारिग़ बुख़ारी

वो खुल कर मुझ से मिलता भी नहीं है

फ़रहत क़ादरी

तिरे होंटों के सहरा में तिरी आँखों के जंगल में

फ़रहत एहसास

मैं रोना चाहता हूँ ख़ूब रोना चाहता हूँ मैं

फ़रहत एहसास

लोग यूँ जाते नज़र आते हैं मक़्तल की तरफ़

फ़रहत एहसास

कुर्सी-ए-दिल पे तिरे जाते ही दर्द आ बैठे

फ़रहत एहसास

इश्क़ भी करना है हम को और ज़िंदा भी रहना है

फ़रहत एहसास

बा-मा'नियों से बच के मोहमल की राह पकड़ी

फ़रहत एहसास

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