जंगल Poetry (page 3)

मसअलों की भीड़ में इंसाँ को तन्हा कर दिया

याक़ूब यावर

चंद घंटे शोर ओ ग़ुल की ज़िंदगी चारों तरफ़

याक़ूब आमिर

मुसाफ़िर चलते रहते हैं

वज़ीर आग़ा

अंकबूत

वज़ीर आग़ा

उम्र की इस नाव का चलना भी क्या रुकना भी क्या

वज़ीर आग़ा

रंग और रूप से जो बाला है

वज़ीर आग़ा

धार सी ताज़ा लहू की शबनम-अफ़्शानी में है

वज़ीर आग़ा

पेश वो हर पल है साहब

वक़ार सहर

इक-बटा-दो को करूँ क्यूँ न रक़म दो-बटा-चार

वक़ार हिल्म सय्यद नगलवी

जुनूँ-आवर शब-ए-महताब थी पी की तमन्ना में

वली उज़लत

गर्द-बाद अफ़्सोस का जंगल से है पैदा हनूज़

वली उज़लत

हमारे शहर में अब हर तरफ़ वहशत बरसती है

वाली आसी

बहुत दिन से कोई मंज़र बनाना चाहते हैं हम

वाली आसी

उल्फ़त ने तिरी हम को तो रक्खा न कहीं का

वाजिद अली शाह अख़्तर

उल्फ़त ने तिरी हम को तो रक्खा न कहीं का

वाजिद अली शाह अख़्तर

कभी लुत्फ़-ए-ज़बान-ए-ख़ुश-बयाँ थे

वाजिद अली शाह अख़्तर

आरियों की पहली आमद हिन्दोस्तान में

वहीदुद्दीन सलीम

उम्र को करती हैं पामाल बराबर यादें

वहीद अख़्तर

तुम ने हमारा साथ दिया तो ख़ुद को हम पा जाएँगे

विश्वनाथ दर्द

आइने से बात करना इतना आसाँ भी नहीं

उषा भदोरिया

बाहर बाहर सन्नाटा है अंदर अंदर शोर बहुत

उमर अंसारी

निकले लोग सफ़र पर शब के जंगल में

तारिक़ पीरज़ादा

दरिया में तुग़्यानी है

तनवीर गौहर

शहरों के सारे जंगल गुंजान हो गए हैं

तनवीर अंजुम

तन्हाई के फ़न में कामयाब

तनवीर अंजुम

जान के एवज़

तनवीर अंजुम

आज़ादी से नींदों तक

तनवीर अंजुम

शहरों के सारे जंगल गुंजान हो गए हैं

तनवीर अंजुम

ये बात दश्त-ए-वफ़ा की नहीं चमन की है

तनवीर अहमद अल्वी

जलना हो तो मुझ से जल

तन्हा तिम्मापुरी

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