जंगल Poetry (page 16)

काट गई कोहरे की चादर सर्द हवा की तेज़ी माप

अहसन शफ़ीक़

अपनी ही आवाज़ के क़द के बराबर हो गया

अहमद तनवीर

ये वक़्त रौशनी का मुख़्तसर है

अहमद शनास

नए ज़मानों की चाप तो सर पे आ खड़ी थी

अहमद शहरयार

इनइकास-ए-तिश्नगी सहरा भी है दरिया भी है

अहमद शहरयार

दुनिया से हर रिश्ता तोड़ा ख़ुद से रु-गर्दानी की

अहमद शहरयार

जो दिख रहा उसी के अंदर जो अन-दिखा है वो शाइरी है

अहमद सलमान

आसमाँ-ज़ाद ज़मीनों पे कहीं नाचते हैं

अहमद सग़ीर सिद्दीक़ी

सफ़र और हम-सफ़र

अहमद नदीम क़ासमी

जंगल की आग

अहमद नदीम क़ासमी

अक़ीदे

अहमद नदीम क़ासमी

रोने लगता हूँ मोहब्बत में तो कहता है कोई

अहमद मुश्ताक़

जैसे पौ फट रही हो जंगल में

अहमद मुश्ताक़

धुएँ से आसमाँ का रंग मैला होता जाता है

अहमद मुश्ताक़

अरे क्यूँ डर रहे हो जंगल से

अहमद मुश्ताक़

मुसलसल याद आती है चमक चश्म-ए-ग़ज़ालाँ की

अहमद मुश्ताक़

मिल ही आते हैं उसे ऐसा भी क्या हो जाएगा

अहमद मुश्ताक़

बहुत रुक रुक के चलती है हवा ख़ाली मकानों में

अहमद मुश्ताक़

उठिए कि फिर ये मौक़ा हाथों से जा रहेगा

अहमद महफ़ूज़

उठ जा कि अब ये मौक़ा हाथों से जा रहेगा

अहमद महफ़ूज़

अन-पढ़ गूँगे का रजज़

अहमद जावेद

सर-ए-आसमाँ सर-ए-ज़मीं

अहमद हमेश

ऐसा भी नहीं कि

अहमद हमेश

1973 की एक नज़्म

अहमद हमेश

अभी हम ख़ूबसूरत हैं

अहमद फ़राज़

उस पार तो ख़ैर आसमाँ है

अहमद अज़ीमाबादी

वही दरिंदा

अहमद आज़ाद

तुम कहाँ हो

अहमद आज़ाद

वक़्त के तूफ़ानी सागर में क्रोध कपट के रेले हैं

अफ़ज़ल परवेज़

मकान-ए-ख़्वाब में जंगल की बास रहने लगी

अफ़ज़ाल नवेद

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