जंगल Poetry (page 12)
रेत भरी है इन आँखों में आँसू से तुम धो लेना
बशीर बद्र
तो ऐसा क्यूँ नहीं करते
बशर नवाज़
मेरी गो आह से जंगल न जले ख़ुश्क तो हो
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
गौरय्यों ने जश्न मनाया मेरे आँगन बारिश का
बद्र-ए-आलम ख़लिश
दास्तान-ए-ग़म तुझे बतलाएँ क्या
बाबर रहमान शाह
अब अपनी चीख़ भी क्या अपनी बे ज़बानी क्या
अज़रा परवीन
ख़्वाब-जंगल
अज़रा नक़वी
आख़िरी रूसूमात के दौरान
अज़रा अब्बास
ग़रीब शहर
अज़ीज़ क़ैसी
आह-ए-बे-असर निकली नाला ना-रसा निकला
अज़ीज़ क़ैसी
वक़्त की आँख में सदियों की थकन है, मैं हूँ
अज़ीज़ नबील
दे रहे हैं इस लिए जंगल में धरना जानवर
अज़ीज़ फ़ैसल
मैं ने ये सोच के बोए नहीं ख़्वाबों के दरख़्त
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
किस क़दर कम-असास हैं कुछ लोग
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
अपनी बीती हुई रंगीन जवानी देगा
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
दिल की गली में चाँद निकलता रहता है
अज़हर इक़बाल
गीले बालों को सँभाल और निकल जंगल से
अज़हर फ़राग़
कमी है कौन सी घर में दिखाने लग गए हैं
अज़हर फ़राग़
शाम परिंदे लौट आए तो हम तिरी खोज में चल निकले
अज़हर अली
सब बातें ला-हासिल ठहरीं सारे ज़िक्र फ़ुज़ूल गए
अज़हर अली
ग़ज़ल उस के लिए कहते हैं लेकिन दर-हक़ीक़त हम
अज़हर अदीब
जगह फूलों की रखते हैं घना साया बनाते हैं
अज़हर अदीब
सात सुरों का बहता दरिया तेरे नाम
अय्यूब ख़ावर
ख़्वाहिशें दुनिया की बार-ए-दोश-ओ-गर्दन हो गईं
औज लखनवी
वो बात जिस से ये डर था खुली तो जाँ लेगी
आतिफ़ ख़ान
कभी साया है कभी धूप मुक़द्दर मेरा
अतहर नफ़ीस
वो गर्द है कि वक़्त से ओझल तो मैं भी हूँ
अताउल हक़ क़ासमी
इंक़लाब
असरार-उल-हक़ मजाज़
कर्गस को सुरख़ाब बनाना चाहोगे
असरा रिज़वी
जाने किस लम्हा-ए-वहशी की तलब है कि फ़लक
असलम कोलसरी
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