जी नहीं आप से क्या मुझ को शिकायत होगी
हाँ मुझे तल्ख़ी-ए-हालात पे रोना आया
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तिरी नज़र से ज़माने बदलते रहते हैं
खोल कर इन सियाह बालों को
तुम्हारे ब'अद ख़ुदा जाने क्या हुआ दिल को
तुम ने दीवाना बनाया मुझ को
पास आए तो और हो गए दूर
बड़े ख़तरे में है हुस्न-ए-गुलिस्ताँ हम न कहते थे
वफ़ा अंजाम होती जा रही है
छुप छुप के अब न देख वफ़ा के मक़ाम से
हमें ख़बर है वो मेहमान एक रात का है
कितने अंजान हैं क्या सादगी से पूछते हैं
सुब्ह से शाम के आसार नज़र आने लगे
दिल-ए-वीराँ को देखते क्या हो