जिस दिन से भुला दिया है तू ने
आता ही नहीं ख़याल अपना
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दिल-ए-नादाँ तिरी हालत क्या है
जब वज्ह-ए-सुकून-ए-जाँ ठहर जाए
रात गुज़रे न दर्द-ए-दिल ठहरे
खोया पाने वालों ने
शायद तुम्हारे साथ भी वापस न आ सकें
क़रीब मौत खड़ी है ज़रा ठहर जाओ
लुत्फ़ फ़रमा सको तो आ जाओ
ज़ोहद किस किस ने लुटाए हैं तुम्हें क्या मालूम
दुश्मन गए तो कशमकश-ए-दोस्ती गई
क्यूँ उजड़ जाती है दिल की महफ़िल
तिरी नज़र से ज़माने बदलते रहते हैं