जाने फिर मुँह में ज़बाँ रखने का मसरफ़ क्या है
जो कहा चाहते हैं वो तो नहीं कह सकते
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Wasi Shah
Allama Iqbal
Rahat Indori
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Habib Jalib
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(499) Peoples Rate This
कुछ बे-नाम तअल्लुक़ जिन को नाम अच्छा सा देने में
मुश्किल
कुल्लिया
वीडियो गेम
आज सोचा है कि ख़ुद रस्ते बनाना सीख लूँ
उस के आने की दुआ होती है दिन भर लेकिन
उस रस्ते पर जाते देखा कोई नहीं है
ऐसा क्या अंधेर मचा है मेरे ज़ख़्म नहीं भरते
कभी कभी तो अच्छा-ख़ासा चलते चलते
एक तअल्लुक़ जान के मिलते हैं वर्ना
बदन और ज़ेहन मिल बैठे हैं फिर से
मयस्सर ख़ुद निगह-दारी की आसाइश नहीं रहती