एक तअल्लुक़ जान के मिलते हैं वर्ना
अपनी ख़ातिर जीना सहल तो होता है
रफ़्ता रफ़्ता हो जाएगी आसानी
हर मैदान में पहला-पहल तो होता है
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Gulzar
Jaun Eliya
Rahat Indori
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Habib Jalib
Wasi Shah
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(624) Peoples Rate This
कुछ बे-नाम तअल्लुक़ जिन को नाम अच्छा सा देने में
ऐसा क्या अंधेर मचा है मेरे ज़ख़्म नहीं भरते
कभी कभी तो अच्छा-ख़ासा चलते चलते
सुनते रहते हैं फ़क़त कुछ वो नहीं कह सकते
तू ने पूछा है मिरे दोस्त!
बदन और ज़ेहन मिल बैठे हैं फिर से
नक़्श जब ज़ख़्म बना ज़ख़्म भी नासूर हुआ
सर-ए-ख़याल मैं जब भूल भी गई कि मैं हूँ
मुश्किल
कुल्लिया
मयस्सर ख़ुद निगह-दारी की आसाइश नहीं रहती
उस रस्ते पर जाते देखा कोई नहीं है