मुझे कुछ देर सोना है
ज़माने चीख़ते हैं मेरे कानों में
ख़मोशी किस तरह होगी
मिरी आँखों में सूरज आ बसे हैं
रात कैसे हो
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ख़ाली हाथों में मोहब्बत बाँटती रह जाऊँगी
आज सोचा है कि ख़ुद रस्ते बनाना सीख लूँ
पंक्चुवेशन
नक़्श जब ज़ख़्म बना ज़ख़्म भी नासूर हुआ
जाने फिर मुँह में ज़बाँ रखने का मसरफ़ क्या है
कभी कभी तो अच्छा-ख़ासा चलते चलते
उस रस्ते पर जाते देखा कोई नहीं है
मुबारकबाद
ऐसा क्या अंधेर मचा है मेरे ज़ख़्म नहीं भरते
एक तअल्लुक़ जान के मिलते हैं वर्ना
रिसाइकिलबिन