एक समुंदर
उस में रक्खे चंद जज़ीरे
बीच में जिन के
दूरी की नीलाहट रक़्साँ
रब्त-ए-बाहम बस पानी की अंधी लहरें
या तूफ़ानी हवा के झक्कड़
सुना है एक जज़ीरे पर कोह-ए-जूदी है
हम औलाद-ए-नूह तो हैं पर
नाव बनाने का सारा फ़न भूल चुके हैं
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
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Rahat Indori
Gulzar
Anwar Masood
Wasi Shah
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
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एक तअल्लुक़ जान के मिलते हैं वर्ना
कोई इम्काँ तो न था उस का मगर चाहता था
पंक्चुवेशन
कुल्लिया
रिसाइकिलबिन
जाने फिर मुँह में ज़बाँ रखने का मसरफ़ क्या है
सुनते रहते हैं फ़क़त कुछ वो नहीं कह सकते
ख़ाली हाथों में मोहब्बत बाँटती रह जाऊँगी
मुबारकबाद
ऐसा क्या अंधेर मचा है मेरे ज़ख़्म नहीं भरते
आज सोचा है कि ख़ुद रस्ते बनाना सीख लूँ
मयस्सर ख़ुद निगह-दारी की आसाइश नहीं रहती